मेरे प्यारे मित्रों, बहुत समय हो गया है लगभग एक वर्ष, जब से मैंने आपके समक्ष कुछ प्रस्तुत किया हो।
अब मुझे समझ आ रहा है कि विवाह उपरांत कुछ ऐसे उत्तरदायित्व आ जाते हैं कि समय कब निकल जाता है पता ही नही चलता। 😀
आज भी मैं जो प्रस्तुत करने जा रहा हूँ वह मेरी रचना नहीं है अपितु वो एक ऐसे महानुभाव की है जिन्होंने ही हमें यह इतना सुंदर जीवन प्रदान किया है। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं में किनकी बात कर रहा हूँ?
जी हां यह कविता हमारे परम् पूज्य पिताजी की ही रचना है। दीवाली के अवकाश में उन्होंने यह कविता देश की वर्तमान स्तिथि को भूत काल के कुछ घटना क्रमों के साथ तुलना उपरांत ,गहन विचार के बाद लिखी है।
आशा करता हूं आपको पसंद आएगी।
आजादी तो मिली हमें पर,
देश के हो गये टुकड़े।।
कितने अगणित योद्धाओं ने
अपने प्राण गँवाये।
जेलें काटीं चक्की पीसी,
नित झेली यातनाएँ।
त्यागे जीवन के सब सुखड़े।।
आजादी…..
देश के…..
सीनों पर खाते थे गोली,
तीरों सी चुभती थी बोली।
इंगलिश में सुनते थे गाली,
खूँ बहता हो जैसे नाली।
सहते थे सारे दुखड़े।।
आजादी…..
देश के…..
लाहौर करांची छिन गये हमसे,
और छिने नदियों के घाट।
गुरुद्वारा ननकाना साहब,
ऒर छिने ढाका के हाट।
गोरे मुश्किल से उखड़े।।
आजादी…..
देश के…….
पहले धर्म पर मिट जाते थे,
अब धर्मो में बंट जाते हैं।
नेताजी जातियों में बांटे,
हम ठगे से सब रह जाते हैं।
सबके उतर गए मुखड़े।।
आजादी…..
देश के……
देश को और न बंटने देना,
चाहे शूली तुम चढ़ लेना।
जीवन चार दिनों का मेला,
यह शरीर माटी का डेला।
मोती माला के चुन रे।।
आजादी……
देश के……
अगणित बलिदानों की थाती,
उन्नति करें सभी दिन राती।
सब बन जायें दिया और बाती,
दादा पिता और सब नाती।
हिय अन्तर्मन की सुन रे।।
आजादी……
देश के……
धन जन बल में कभी न कम थे,
जग में सबसे बढ़कर हम थे।
हम जगतगुरु सोने की चिड़िया,
संस्कृति यहाँ की सबसे बढ़िया।
नर नारि यहाँ सुघड़े।।
आजादी…..
देश के……
*देवेन्द्र प्रसाद शर्मा (स0अ0)*
*पूर्व मा0 वि0 भरतुआ*
*धनीपुर अलीगढ़*
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